लेखनी कविता -सोजें-पिनहाँ हो - फ़िराक़ गोरखपुरी

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सोजें-पिनहाँ हो / फ़िराक़ गोरखपुरी सोज़े-पिनहाँ१ हो,चश्मे-पुरनम२ हो. दिल में अच्छा-बुरा कोई ग़म हो. फिर से तरतीब दें ज़माने को. ऐ ग़में ज़िन्दगी मुनज़्ज़म३ हो. इन्किलाब आ ही जाएगा इक रोज़. ...

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